दिल्ली की सड़कों पर जब धुंआ नहीं बल्कि फैसलों की धुंध छाने लगे…
जब पर्यावरण की चिंता के नाम पर मिडिल क्लास के सपनों को कबाड़ में फेंका जाने लगे…
तो ज़रूरत होती है सच्चाई को उजागर करने की।
रेखा गुप्ता जी और दिल्ली सरकार ने हाल ही में एक फैसला लिया है, जिसके तहत दिल्ली में 10 साल से पुरानी डीज़ल और 15 साल से पुरानी पेट्रोल गाड़ियां अब सड़कों पर नहीं चलेंगी। इसे "एंड ऑफ लाइफ व्हीकल" का नाम दिया गया है। पर सवाल यह है – क्या ये फैसला सही है? और अगर सही है, तो क्या तरीका भी सही है?
सरकार के मुताबिक दिल्ली में लगभग 65 लाख गाड़ियां ऐसी हैं जो इस नई पॉलिसी के तहत अब "इनवैलिड" हो गई हैं। यानी ये गाड़ियां सड़कों पर नहीं चल सकेंगी। और यदि कोई इन गाड़ियों को लेकर पेट्रोल पंप पर गया, तो CCTV कैमरा उन्हें पहचान लेगा और गाड़ी को जब्त कर लिया जाएगा।
सरकार कहती है, “Pollution Control,” लेकिन...
क्या यह सिर्फ दिखावा है?
क्या सच में इससे दिल्ली की हवा साफ होगी?
या फिर यह मिडिल क्लास के खिलाफ एक "सिस्टमेटिक स्ट्राइक" है?
सोचिए…
एक परिवार जो 5-7 लाख रुपये जोड़कर एक सेकंड हैंड कार लेता है...
जो सुबह बच्चे को स्कूल छोड़ता है, फिर ऑफिस जाता है, शाम को सब्जी लाता है...
आज उस कार को स्क्रैप में बेचने को मजबूर कर दिया गया।
कोई रीसेल वैल्यू नहीं।
कोई मुआवज़ा नहीं।
और नई कार खरीदने के लिए जेब में पैसा भी नहीं।
क्या यही न्याय है?
क्या गरीब और मिडिल क्लास को सजा देना ही "पॉलिसी मेकिंग" है?
अगर हर गाड़ी की औसतन कीमत ₹1 लाख भी मानी जाए (जो कि बहुत कम है),
तो दिल्ली के लोगों को ₹65,000 करोड़ का नुकसान होगा।
और इससे फायदा?
सरकार को टैक्स मिलेगा।
कार कंपनियों को सेल्स मिलेगा।
लोन कंपनियों को ब्याज मिलेगा।
इंश्योरेंस इंडस्ट्री को क्लाइंट मिलेगा।
पर आम आदमी?
उसका क्या?
सरकार और कोर्ट कहती हैं कि दिल्ली में प्रदूषण गाड़ियों की वजह से है।
पर क्या यह पूरी सच्चाई है?
❌ दिल्ली की सरकारी बसें, 15 साल पुरानी, बिना मेंटेनेंस के, आज भी धुआं उगल रही हैं।
❌ कंस्ट्रक्शन साइट्स पर कोई dust control नहीं।
❌ हर साल पंजाब और हरियाणा में पराली जलती है – कोई रोक नहीं।
❌ खुले में कूड़ा जलता है – कोई कंट्रोल नहीं।
लेकिन टारगेट कौन है?
सिर्फ आम आदमी।
लंदन में “ULEZ” (Ultra Low Emission Zone) है। वहां हर गाड़ी को यूरो-6 स्टैंडर्ड फॉलो करना होता है, वरना जुर्माना।
पर वहां की सरकार ने क्या किया?
✅ EV सब्सिडी दी।
✅ साइकिलिंग को प्रमोट किया।
✅ पब्लिक ट्रांसपोर्ट फ्री किया।
✅ और तब जाकर लोगों ने पुरानी गाड़ियां छोड़ीं।
पर हमारे देश में?
सीधा गाड़ी छीन लो, बिना विकल्प दिए।
क्या आपने देखा है कि इस मुद्दे पर कोई स्ट्रॉन्ग अपोज़िशन खड़ा हुआ हो?
नहीं।
जो लोग सरकार को चैलेंज कर सकते थे, वो या तो ‘डील’ कर चुके हैं या खुद इस सिस्टम का हिस्सा बन चुके हैं। इससे ज़्यादा एक्टिव तो बीजेपी थी जब वो दिल्ली में विपक्ष में थी।
आज मिडिल क्लास सड़क पर है, और नेता सो रहे हैं।
Pollution Under Control (PUC) सर्टिफिकेट आधारित रिन्यूअल सिस्टम लागू हो।
10-15 साल पुरानी वेल-मेंटेंड गाड़ियों को चलने दिया जाए।
सरकार EV या Hybrid Vehicle खरीदने पर सब्सिडी दे।
सख्त “Dust Management Law” लागू हो।
पराली जलाने वालों पर सीधा ऐक्शन लिया जाए।
बहुत संभव है।
मिडिल क्लास वो तबका है जो…
टैक्स देता है,
कानून मानता है,
वोट देता है,
और फिर मारा जाता है।
62 लाख लोगों की गाड़ियां कबाड़ में भेजना, एक ऐसा फैसला है जो अगला चुनाव बदल सकता है।
गाड़ियों को बंद करना समाधान नहीं है।
जिनके पास कार है, वो अमीर नहीं हैं – वो ज़रूरतमंद हैं।
सरकार को चाहिए कि वो प्रदूषण का मूल कारण समझे,
न कि सिर्फ एक आसान टारगेट ढूंढकर उसे स्क्रैप कर दे।
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— गुरुजी सुनील चौधरी, Digital Success Coach
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Social and Political Commentar, Nationalist, Mission to Make Positive Impact
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Guruji Sunil Chaudhary
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