
नमस्ते साथियों,
दुनिया भर में जब भी कहीं बड़े पैमाने पर हिंसक आंदोलन या विरोध प्रदर्शन होते हैं, तो लोग अक्सर पूछते हैं – “ये अचानक क्यों हुआ?” लेकिन सच्चाई यह है कि हिंसा कभी भी अचानक नहीं होती। उसके पीछे लंबे समय से पनप रहा असंतोष (Discontent), सामाजिक-आर्थिक असमानता और राजनीतिक उदासीनता छिपी होती है। हाल के दिनों में नेपाल और फ्रांस इसके बड़े उदाहरण बनकर सामने आए हैं।
इस ब्लॉग में हम विस्तार से समझेंगे:
नेपाल और फ्रांस में हिंसक प्रदर्शनों की जड़ें
हिंसा के पीछे का मनोविज्ञान और मॉब मेंटालिटी
सरकारों की आम गलतियाँ
और क्यों भारत आज इस अस्थिर दुनिया में एक स्थिर राष्ट्र के रूप में चमक रहा है।
नेपाल: युवाओं का विद्रोह और नेतृत्व का संकट
नेपाल में हालिया हिंसा को "अनप्रेसिडेंटेड" कहा गया।
जनता का असंतोष सरकार की कार्यप्रणाली और नेतृत्व के अभाव को लेकर था।
अंतरिम सरकार को लेकर लगातार चर्चाएँ होती रहीं – पहले रैपर और मेयर बल्ले शाह का नाम आया, फिर पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की, और अंत में ऊर्जा इंजीनियर कुल मन घिसिंग।
युवाओं ने घिसिंग को "धरातल पर काम करने वाला" और "देशभक्त" माना क्योंकि उन्होंने बिजली संकट में क्रांतिकारी कदम उठाए थे।
👉 असली समस्या थी कि जनता को भरोसेमंद नेतृत्व नहीं दिख रहा था। जब जनता को लगता है कि उनकी आवाज़ को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है, तब असंतोष हिंसा का रूप ले लेता है।
फ्रांस: वेलफेयर कट्स और इमीग्रेशन की राजनीति
नेपाल के बाद नजर डालते हैं फ्रांस पर।
इमैनुएल मैक्रों के कार्यकाल में देश ने राजनीतिक अस्थिरता देखी – 8 साल में 7 प्रधानमंत्री बदले गए।
यूरोप की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था फ्रांस पर €3.3 ट्रिलियन का कर्ज़ है।
हाल ही में प्रधानमंत्री सेबेस्टियन ने वेलफेयर योजनाओं में €44 बिलियन की कटौती का प्रस्ताव रखा।
नतीजा? जनता सड़कों पर उतर आई। नो-कॉन्फिडेंस मोशन आया और प्रधानमंत्री को पद छोड़ना पड़ा।
👉 फ्रांस का असंतोष आर्थिक नीतियों और इमीग्रेशन से जुड़े तनाव पर आधारित था। जब जनता को लगे कि उनके जीवन स्तर पर हमला हो रहा है, तो असंतोष आग में घी डालने का काम करता है।
असंतोष से हिंसा तक: मनोविज्ञान और मॉब मेंटालिटी
हिंसा कभी भी केवल राजनीति से प्रेरित नहीं होती।
शुरुआत में आंदोलन जेन्युइन मांगों से शुरू होते हैं।
अगर सरकार उन्हें अनसुना कर देती है, तो एंटी-एस्टैब्लिशमेंट टूलकिट सक्रिय हो जाती है।
आंदोलन में शामिल 10,000 युवाओं में से केवल 100 लोग पत्थर फेंकते हैं, आग लगाते हैं – और यही मीडिया में “हिंसक आंदोलन” कहलाता है।
यानि कि मॉब मेंटालिटी असल में कुछ एजेंडाधारी लोगों द्वारा भड़काई जाती है, लेकिन माहौल तैयार करती है जनता का असली असंतोष।
👉 यही कारण है कि किसी भी आंदोलन को “सिर्फ पॉलिटिकली मोटिवेटेड” कहकर खारिज करना सरकार की सबसे बड़ी भूल साबित होती है।
भारत का संतुलित मॉडल: क्यों हम अलग हैं?
अब सवाल उठता है – नेपाल और फ्रांस जैसे हालात भारत में क्यों नहीं दिखते?
भारत में सरकार लगातार बैक-चैनल वार्ता करती है, चाहे मणिपुर का मामला हो या किसानों का।
जब भी कोई असंतोष उठता है, उसे पूरी तरह इग्नोर नहीं किया जाता, बल्कि बैलेंसिंग एक्ट से संभाला जाता है।
मोदी सरकार ने वेलफेयर स्कीम्स, आत्मनिर्भर भारत, स्पेस टेक्नोलॉजी, डिफेंस और इकोनॉमी में निरंतर प्रगति कराई है।
विपक्ष द्वारा उठाए गए मुद्दे – “चौकीदार चोर है” या “आगाड़ी बनाम पिछाड़ी” – जनता के असली असंतोष से जुड़े नहीं हैं, इसलिए असरदार नहीं बन पाते।
👉 यही कारण है कि भारत आज एक स्थिर और उभरती शक्ति है।
2050 तक भारत दुनिया की अग्रणी शक्तियों में गिना जाएगा, अगर यही संतुलित अप्रोच जारी रही।
निष्कर्ष
हिंसा कभी भी बिना कारण नहीं होती।
नेपाल में यह नेतृत्व संकट और युवाओं की नाराज़गी से उपजी।
फ्रांस में यह आर्थिक कटौतियों और इमीग्रेशन तनाव से निकली।
और विश्वभर में यह सरकारों की एक ही गलती से शुरू होती है – जनता के असंतोष को नज़रअंदाज़ करना।
भारत आज इसलिए अलग है क्योंकि यहाँ सरकार संतुलन साधकर चल रही है। जनता के साथ संवाद बनाए रख रही है और असली मुद्दों को नज़रअंदाज़ नहीं कर रही।
भारत को नेपाल, फ्रांस या बांग्लादेश से मत मिलाइए।
भारत आज उगता हुआ सूरज है – स्थिरता, प्रगति और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ता हुआ।
जय हिंद 🇮🇳
वंदे मातरम ✨
Social and Political Commentar, Nationalist, Mission to Make Positive Impact
Email suniltams@gmail.com

Guruji Sunil Chaudhary
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